परिचय - निलगड़ पहाड़ (जिसे मोर्चा बेड़ी भी कहते है) जो की माँ नर्मदा के उत्तरी तट पर ओम्कारेश्वर मंदिर के वायव्य कोण एवं वैदूर्य मणी पर्वत के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है । यह पहाड़ काफी ऊँचाई पर स्थित है। नर्मदा के उत्तर तट पर बसा यह पहाड़ अपने आप में कई रहस्यों को समेटे हुए है। पूरा क्षेत्र परकोटे की दीवार से घिरा है। निलगढ़ पहाड़ की रहस्यमय यात्रा के दौरान हमे जगली जानवरों जैसे तेंदुए को और हिरनों के होने के भी साक्ष्य मिले है। आइये हमारी यात्रा को आगे लेकर चलते है।
नीलगढ़ पहाड़ ( nilgadh pahad )
यह हमारे लिए सदैव एक विश्मय कारी क्षेत्र रहा है। कई बार हम संगम तक जाकर उस किले की दीवारों के भग्नावशेष देख कर मन में उस जगह जाने की इच्छा प्रबल हुई । लेकिन वह हमारे लिए सही समय नही था। कुछ समय पूर्व 2020 में हमारी अचानक "नीलगढ़ पहाड़(Nilgadh Kila)" पर जाने की योजना बनी। हम सुबह 5 बजे घर से निकल पड़े। झुला पुर पार कर करीब 45 मिनिट का सफ़र तय कर हम संगम तक पहुच गये। परन्तु संगम पर पहुचते ही मन में निराशा हाथ लगी क्योंकि नाव की व्यवस्था नही हो पा रही थी। करीब 2 घंटे तक हम संगम पर बैठे रहे। प्रतीक्षा करते रहे। अचानक तभी एक नाव वाला हमारे करीब घूमते हुए पहुँच गया । अब हमारी निराशा उत्सुकता में बदल गई थी, क्यूंकि अब हमारे लिए नाव की व्यवस्था हो चुकी थी। हम प्रशन्न थे। मन ही मन सोच रहे थे, चलो आज उस पहाड़ पर जाकर उन दीवारों को पास से निहारने का मौका मिलेगा। निलगढ़ पहाड़ पूर्ण रूप से झाड़ियों से भरा है। साथ ही वन्य जीवों की स्थली भी है। यहाँ जंगली जानवरों का वास है।
नाव से पार किया कावेरी संगम(naav se paar kiya kaveri sangam )
अब नाव में बैठ कर कावेरी नदी पार कर रहे थे । कावेरी की तीर्व वेग सी बहती धारा को नाव चिरतीं हुई आगे बढ़ रही थी । कावेरी की बहती धारा शुद्ध कंचन प्रतीत हो रही थी । गहराई में पत्थर आसानी से दिखाई दे रहे थे । इतनी आवाज के बाद भी कावेरी की झर-झर बहती धरा स्पष्ट सुनाई दे रही थी । कुछ ही पलों में हम देखते ही देखते एक किनारे से दुसरे किनारे पहुच गए । यहाँ नाव के अलावा आप तैरकर भी कावेरी नदी पार कर सकते है। लेकिन हम इतने अच्छे तैरक नही थे। इसलिए हमने "नाव से पार किया कावेरी संगम (naav se paar kiya kaveri sangam )"। अब शिवलिंग आकार के पत्थरों से होकर आगे बढ़ रहे थे । यहाँ से कुछ गज आगे चलने पर नर्मदा कावेरी का संगम मनोरम प्रतीत होता है । आगे रास्ते में उतर चढाव वाले रास्ते भी आते है । कही पर गहरी खाई (नाला) तो कही पर रेतीली जमीन करीब आधा मील का सफ़र तय करने के बाद हम सिद्ध टेकरी जिसे अवधूत धाम भी कहते है, हम पहुचने ही वाले थे । तभी हमे हिरने दिखाई दी जो उत्तर की ओंर जाते प्रतीत हो रही थी । हमारा मन चंचल होता है । डर हमेशा हमारे साथ ही रहता है, न जाने कौनसे इशारे मन में डर उत्पन्न करने लग जाते है ।
सिद्ध टेकरी (siddh tekri)
अब हम आश्रम के समीप पहुँच चुके थे । जिसे "सिद्ध टेकरी ( siddh tekri)" के नाम से जाना जाता है। इसी आश्रम से होकर उपर रास्ता जाता है, गुरूजी से मिलने की इच्छा मन में हुई । हम कुछ देर इस आश्रम में रुके, यहाँ के किसी चेले ने बताया गुरूजी अभी किसी से मिल नहीं सकते तो हम उनके पास ही बैठे, उन्होंने हमे बताया की इस स्थान पर तेंदुए और हिरण पानी पिने के लिए भी आते है, लेकिन तेंदुए किसी को कोई भी नुकशान नही पहुचाते । हम करीब 30 मिनिट तक वहां बैठे और उनसे बाते करते रहे कुछ जानकारियां पूछने लगे । कुछ समय यहाँ रुकने के बाद हम आगे बढ़े ।
खड़ी चढ़ाई (khadi chadhai )
आश्रम से निकल कर हम आगे बढ़ रहे थे । यहाँ से "खड़ी चढ़ाई (khadi chadhai)" वाला रास्ता शुरू होता है । रास्ते में एक ओंर झाड़ियाँ है, तो दूसरी ओंर माँ नर्मदा का मनोरम दृश्य सुन्दर प्रतीत होता है । जैसे - जैसे चढ़ाई चड़ते है ऊँचाई बढ़ती जाती है । अंतिम छोर पर पहुचने के बाद खाई बहुत भयपूर्ण लगती है, क्यूंकि रास्ता खाई के एक दम करीब है। अगर थोडा भी पैर फिसला तो समझों निचे । बड़े ही संभल कर चलना होता है । हम चलते गए पूर्ण चढ़ाई चढ़ने के बाद हम चढ़ाई के अंतिम छोर पर पहुँच गए । हम चढ़ाई चढ़कर जैसे ही रुके और दक्षिण की ओंर मुड़े आंखे खुली की खुली रह गई । मन स्थिर हो गया । यहाँ से नर्मदा कावेरी संगम और नर्मदा की धारा स्पष्ट सुनाई देती है । सौंदर्य की देवी माँ नर्मदा तुम कितनी प्यारी और मनोरम लगती हो मन करता है, तुम्हारे बिलकुल किनारे एक कुटियाँ बना लू और अपना सारा जीवन व्यतीत करू.... तुम्हे जितना देखता हूँ उतना चैन आता है । मेरी माँ रेवा जगतजननी । नर्मदा का सौंदर्यीकरण यहाँ अपने ओंर खींचे रखता है । अब हम मैया को प्रणाम कर आगे बढ़ते है । आगे परकोटे की दीवार तक पहुँच जाते है । जो झिर्ण छिर्ण अवस्था में है ।
परकोटे की दीवार ( Parkote ki Deewar)
चढ़ाई पूर्ण करने के बाद हम परकोटे की ध्वस्त दीवार के गेट तक पहुँच चुके थे । यह पहाड़ इस प्राचीर "परकोटे की दीवार ( Parkote ki Deewar)" से चारों तरफ से घिरा है । इसे इस पहाड़ की रक्षा दीवार भी कहते है । जो प्राचीन समय में इस पहाड़ की सुरक्षा की लिए बनाई गई थी । जो भी यहाँ रहते हो उनकी रक्षा दीवार है यह । यह दीवार आज ध्वस्त अवस्था में है । कुछ देर प्राचीर रक्षा दीवार को निहारने के बाद हम आगे बढ़ने लगते है । अब आगे घनी झाड़ियों वाला रास्ता प्रारंभ हो जाता है ।
झाड़ियों वाला रास्ता(Jhadiyon wala rasta)
हम आगे तो बढ़ रहे थे। "झाड़ियों वाला रास्ता(Jhadiyon wala rasta)" प्रारंभ हो गाया था, लेकिन मन में भय भी था । क्यूंकि हम निचे सुनकर आये थे । यहाँ पर जंगली जानवर का वास है । परकोटे से आगे पूरा क्षेत्र वनों से घिरा है । यह क्षेत्र कई खूंखार वन्यप्राणियों से भरा है । हम झाड़ियों से निकल रहे थे । आगे एक ऐसा पेड़ दिखाई दिया जिसमे जैसे तेंदुए के पैरों के निशान हो । कुछ देर देखते रहे फिर आगे बढ़ते रहे आगे रास्ता कठिन था । हम सब साथ में एक के पीछे एक चल रहे थे । नीलगढ़ पहाड़ काफी जगह में फैला है । हमे परकोटे की दिवार पूर्व की ओंर तो दिखाई दे रही थी, लेकिन पश्चिम की दीवार नही दिखाई दे रही थी । आगे श्री हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है । जो सुनसान क्षेत्र में स्थित है. । हम कुछ देर यहाँ रुकते है, हनुमान जी के दर्शन कर हम आगे बढ़ने का निर्णय लेते है ।
तेंदुए के पैरो के निशान(tendue ke pairo ke Nishan)
श्री हनुमान जी के दर्शन कर हम आगे बढ़े । जैसे ही कुछ दूर चले हमें हिरणों का मल दिखाई दिया । हमने आसपास देखा भी लेकिन कुछ दिखाई नहीं दिया । मन में भय उत्पन हो रहा था । कुछ ही दूर चले की हमे "तेंदुए के पैरो के निशान(tendue ke pairo ke Nishan)" दिखाई दिए, देखते ही हमारे शरीर के रोंगटे खड़े होने चालू हो गए । जो भय था अब डराने की स्थिति में आ चूका था । हमने कुछ देर वही रूककर विचार किया शायद आगे जाना ठीक नहीं होगा । वैसे भी हम किले के अंतिम छोर तक तो पहुँच ही चुके थे । इनती देर में सर्रर्रर्र से आवाज आई जैसे कोई दबे पाँव दौड़ कर एक तरफ से दूसरी तरफ गया हो । हम शतर्क हो गए। तुरंत हमने वापस लौटने का निर्णय लिया और एक दुसरे की ओंर देखते हुए वापस आने लगे हमारी गति तेज हो गई । दिल की धड़कने बढ़ गई । लेकिन हम सब साथ में रहे एक दूसरे से दूर नही हुए । हम लौट आये........पता नही क्या हो ? नीलगढ़ के जंगल में भय का माहोल नहीं है । जंगल इतना शांत है कि यहाँ से नर्मदा की धारा स्पष्ट सुनाई देती है । वास्तविक रूप से हमारी यह यात्रा रोमांचकारी और अद्भुत रही... । इस किले की दीवारों को बनाने के पीछे क्या रहस्य है यह आज भी किसी को नहीं पता । हम प्रयास कर रहे है जैसे ही हमे कुछ साक्ष्य मिलेंगे । हम आपको जरुर बताएँगे । तब तक आप हमसे जुड़े रहे ।
अंतिम पंक्तियाँ
आखिर आज वो समय आया था, जो हम "नीलगढ़ पहाड़ (nilgadh pahad)" पर जाकर दीवारों को करीब से देख कर आये । दीवार पत्थरों से जमी हुई है । पूरा क्षेत्र वन्य झाड़ियों से घिरा हुआ है । हमारे मन में हमेशा से जिज्ञासा रही थी, कि हम इसे करीब से कब देख पाएंगे । आज हमारी वो जिज्ञासा ख़त्म हुई । दिलचस्प वाली बात यह रही की जैसे हमे तेंदुए के पैरों के निशान दिखे हम वापस लौटने लगे ।न जाने क्या हो ? लेकिन हम सुरक्षित वापस लौट आये । प्रिय पाठको इस दिवार को बनाने के पीछे क्या कारण रहा होगा हम साक्ष्य ढूंड रहे है । आपके इस प्यार से ही हमे आगे एसी यात्राएँ करने की प्रबल इच्छा होती है । आप सभी के प्यार के लिए दिल से धन्यवाद् ..... अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो हमे comment में जरुर बताये । हमारे page से जुड़ सकते है जिसका नाम हमने heritage intro (विरासत परिचय) रखा है। नर्मदा किनारे की अगली रहस्यमय यात्रा जल्द हम आपके समक्ष लाने की कोशिस.....करेंगे । ओमकार परिक्रमा भाग – 2 थोड़ी सी प्रतीक्षा के बाद आने वाली है । अगर अपने हमारी ॐकार परिक्रमा एक अद्भुत यात्रा भाग 1 नहीं पढ़ा है तो अभी जाकर जरुर पढ़े ।
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