ॐ कार परिक्रमा एक अद्भुत
यात्रा
4 वेदो 18 पुराणो और असंख्य शास्त्रो का मूल मंत्र है 'ॐ'
यूं तो ओंकार की गूंज भारत के कण कण मे सुनाई देती है लेकिन इसी भारत भूमि
पर एक स्थान एसा भी जहां साक्षात भारत की पवित्र नदियां नर्मदा और कावेरी
मिलकर ॐ आकार के टापू की रचना करती है...
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ओंकारेश्वर का विहंगम दृश्य
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इसी टापू पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप मे नीलकंठ भगवान शंकर का वास
है।नर्मदा और कावेरी की पवित्र धाराओ के साथ इन मंदिरो की परिक्रमा करना मतलब
ॐ की परिक्रमा करने के समान है।देव भूमि की परिक्रमा करना मतलब ईश्वर के और करीब जाने का राश्ता
है।
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नर्मदा कावेरी संगम ओंकारेश्वर
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परिक्रमा प्रारम्भ -
ॐ आकार के टापू तक पहुचने हेतु लक्ष्मण झूला पल पार करके जाना होता
है
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झूल पुल ओंकारेश्वर |
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जहा से माँ नर्मदा का सौन्दर्य देखते ही बनता है...और छोटी छोटी नाव से आज
भी नाविक नारियल पकड़कर अपने परिवार का पालन पोषण करते आ रहे है।
झूला पुल से माँ नर्मदा के दर्शन होते है इसी के समीप दक्षिण तट पर बना है
नरसिंग टेकरी आश्रम जहां पर गाय के गोबर से बने कंडे हजारो की संख्या मे
दिखाई देते है ...
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गाय के गोबर से बने कंडे (नर्सिंग टेकरी) |
झूला पुल पार करते है ही परिक्रमा प्रारभ हो जाती है ...सर्व प्रथम ओंकारेश्वर से आगे पंचमुखी गणेश के दर्शन के पश्चात परिक्रमा
प्रारम्भ की जाती है ।परिक्रमा मार्ग मे कई प्राचीन मंदिर है जो आज झिर्ण छिर्ण अवस्था मे मालूम
होते है।
* ओंकार मठ
* रामकृष्ण मिशन साधना कुटीर
* माँ आनंद मई आश्रम
केदारेश्वर मंदिर
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केदारेश्वर मंदिर ओंकारेश्वर परिक्रमा मार्ग |
यह मंदिर प्राचीन समय से निर्मिति है ......
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग हिमालय में विराज करते है। प्राचीन काल में बहुत भक्तों की आकुल प्रार्थना से भगवान केदारनाथ जी ओंकार पर्वत के इस स्थान पर पधारें थे । यहाँ पर केदारनाथ जी सदैव निवास करते है। यह सिद्ध स्थान है। केदारनाथ दर्शन पूजन व केदार गंगा स्नान कर मनुष्यों का पुनः जन्म नहीं होता, मुक्त हो जाता है। ठीक उसी तरह इस स्थान का महत्व भी वैसे ही है। अतः इस पवित्र केदारेश्वर शिवजी का दर्शन पूजन कर आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए अपना मूल स्वरूप ओंकार लाभ करने के लिए प्रार्थना करना चाहिए। यह मंदिर ओंकारेश्वर मंदिर से पश्चिम दिशा में है। इस मंदिर का निर्माण 13 वीं शताब्दी में परमार शासको द्वारा करवाया गया था। बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार मराठा शासको द्वारा हूआ था। जिसका शिखर नागर शैली में निर्मित है। कभी इस मंदिर के निर्माण में गर्भगृह और मण्डप की योजना थी। वर्तमान में केवल गर्भगृह और अंतराल अवशिष्ट है। गर्भगृह के मध्य में बाबा केदारेश्वर विराजमान है। और बाहर नंदी कि प्रतिमा है। गर्भगृह कि दीवार में स्तमंभो पर आधारित लघू मंचिकाये बनी हुई है। जिसमे कोई भी प्रतिमा नहीं है। मंदिर ललाट बिंदु पर भगवान गणेश कि लघू आकृति उत्कीर्णित है। द्वार शाखा के नीचे शिव द्वार पाल और चावर धारी युगल शिल्पांकित है। मंदिर हमेशा से शांत वातावरण में रहा है। इस मंदिर के प्रागंण से माँ नर्मदा कि बहती अठ्खेलती धारा तीव्र गामी लगती हैं।
जिसके स्वर वातावरण में निरंतर गुंजायमान होते हैं। भगवान केदारेश्वर की महिमा अपार है। इस स्थान पर मन केंद्रित हो जाता है। और शुन्य विचार के साथ अंतःमन स्थिर हो जाता है।
मंदिर से आगे चलने पर काले मुह के बंदरो की टोली मिलती है बंदरो की टोली
परिक्रमा करने वाले हर यात्री को मिलती है अगर हाथ मे कुछ खाने की सामाग्री हो
और इन्हे न दी जाये तो वे स्वयं छिन लेते है....लेकिन किसी को कोई नुकसान नही
पहुचाते । परिक्रमा मार्ग मे स्थित प्राचीन बड़े बड़े पत्थरो से ये ज्ञात होता है
की इन्हे भी प्राचीन काल के राजाओ ने एक समुचित तरीके से पूरे मार्ग मे जमाया
है .... परिक्रमा (पर्वत) के चारो और पत्थरो से निर्मित एक दीवार है जिसे
प्राचीन काल मे परकोटा भी कहा जाता है। मंदिर के सामने ही नंदी की प्रतिमा विराजमान है
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केदारेश्वर मंदिर के प्रांगण मे विराजित नंदीगण |
मार्ग मे कई आश्रम भी है जिसमे से कुछ आश्रमो की फोटो सलग्न है (नर्मदे हर ) इसी
के आगे प्रतीत होती है जगतजननी माँ नर्मदा मानो यहा माँ नर्मदा का वेग तिर्व हो
जाता है और साथ ही मैया का तेज भी तिर्व हो जाता है । सम्पूर्ण नर्मदा खंड मे एसा
तेज कही भी देखने को नही मिलता ।
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narmada river
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इसी के आगे माँ नर्मदा और कावेरी दो पवित्र नदी मिलकर संगम बनाती है जिसे
नर्मदा कावेरी संगम कहा जाता है। इस पवित्र संगम पर यात्रियों द्वारा पत्थर के
ऊपर पत्थर रख कई मंजिला इमारते बनाई जाती है । सच्चे मन से जितनी भी मंज़िला
इमारत यहा बनाई जाती है , एसी मान्यता है की भविष्य मे उतनी ही मंज़िला इमारत
प्राप्त (बनाई जाती है ) होती है।
यही पर नर्मदा और कावेरी जैसी पवित्र महानतम नदियां मिलकर ॐ आकार के टापू की
रचना करती है।
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नर्मदा कावेरी संगम ओंकारेश्वर |
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पत्थरो से मान्यता के लिए बनाए घर |
धन्यवाद ....
भाग - 2 coming soon............
भाग -2
- * ऋणमुक्तेश्वर महत्व - क्यू चड़ाई जाती है चने की दाल ?
- * गोविंद पाद गुफा का महत्व ।
- * बटुक भैरव जी का महत्व ।
- *शंकराचार्य जी का सन्यास दीक्षा स्थल ।
- * 90 फिट ऊंचे शिवजी की प्रतिमा ।
- *कोटी तीर्थ घाट का महत्व ।
2 Comments
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअति सुंदर
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