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नर्मदा कावेरी संगम ओंकारेश्वर

 

 भारत की दो पवित्र नदियों का संगम 


नर्मदा कावेरी संगम ओंकारेश्वर 

4 वेदो 18 पुराणो और असंख्य शास्त्रों का मूल मंत्र है ' '

यूं तो ओंकार की गूंज भारत के कण - कण मे सुनाई देती है लेकिन इसी भारत भूमि पर एक स्थान ईएसए भी है जहां साक्षात भारत की पवित्र नदियां नर्मदा और कावेरी मिलकर ॐ आकार के टापू की रचना करती है।

इसी टापू (ओंकार पर्वत) पर ओंकारेश्वर के रूप मे नीलकंठ भगवान शंकर का वास है। नर्मदा और कवीरी की पवित्र धाराओ के साथ इन मंदिरो की परिक्रमा करना मतलब ॐ की परिक्रमा करने के समान है। देव  भूमि  की परिक्रमा करना मतलब ईश्वर के और करीब जाने का राश्ता है। इस स्थान का इस क्षेत्र मे बहुत महत्व है। नर्मदा कवेरी संगम  तीर्थ  यह  स्थान ॐ  आकार  की ''  मात्रा  का  स्थान है ।  जिसको  मूलाधार  माना जाता है '' मात्रा भौतिक जगत है। भगवान गौड़पादजी ने कहा है , 'अकार्म नीयते  विश्वम' अर्थात अकार  विश्व को प्राप्त करवा देता है। विश्व का स्वरूप ज्ञान प्राप्त करने पर ही  जीव विश्व  को जीत  सकता है   अन्यथा  नहीं। विश्व कासही स्वरूप जब तक पता नहीं चलता है तब तक जीव इसमे फंसा  रहता है।  विश्व  का   प्रकृत  स्वरूप पता चलने पर उसके प्रति रुचि नाश हो जाती है। ओंकार का क्रम सूक्ष्म तत्व '' मात्रा व ''  मात्रा  इसके विपरीत है।  अर्थात इसके सही स्वरूप जब तक पता नहीं चलता है तब तक  जीव को इसके प्रति बिलकुल भी रुचि नहीं होती । जितना ही इसका प्रकृत स्वरूप पता चलता है उतनी ही इसके प्रति रुचि अधिक  हो  जाती  है।  अतः ओंकार की तीन मात्रा का  सही  स्वरूप ज्ञान लाभ होने पर जीव स्थूल  जगत से  मुक्त  होकर  अपने आप ही अपने मूल स्वरूप में  समा जाता है।  यह कावेरी संगम तीर्थ ओंकार की  '' मात्रा के मूल प्राण केंद्र है। केदारनाथ मंदिर से संगम तक पहुचनेसे पहले मार्ग मे बहुत से मंदिर और आश्रम देखने को मिलते है।

            ओंकार पर्वत की पूर्व दिशा में ओंकारेश्वर से एक मील पहले नर्मदा जी के साथ कावेरी नदी का  प्रथम  संगमहुआ है। जिस पवित्र स्थान पर कुबेर जी का मंदिर है। यह  स्थान  भौतिक  जगत सृष्टिकर्ता ब्रम्हाजी का स्थान है।

पहले इस स्थान पर ब्रम्हा जी का एक मंदिर था जिसमे ब्रम्हाजी की सुंदर काले पत्थर से निर्मित मूर्ति विराजमान  थी। कुबेर जी ने इस स्थान पर  तपस्या  कर  ब्रम्हाजी  के  वरदान से  यक्षों  के  अधिपति पद प्राप्त किया था। एक समय रावण ने कुबेर को युद्ध मे हराकर नवनिधि के  साथ  उनका  सारा  धन  भंडार छिन लिया था। सभी कुछ खो जाने के बाद कुबेर जी ने ओंकारेश्वर के इसी स्थान पर आकार कठोर तपस्या की । कुबेर जी की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रम्हाजी ने पुनः कुबेर जी को नवनिधि के  साथ धनाधिपति व यक्षाधिपति का पद प्रदान किया।  इस स्थान से साथ बहकर लगभग 1 मील के बाद ओंकार  पर्वत के उत्तर की और कावेरी और दक्षिण की और नर्मदा प्रथक होकर बहती है। एसा माना  जाता है।  इनके  मेल संगम से बहते बहते इन दोनों बहनों मे कुछ अनबन हो जाती है और ओंकार पर्वत से दोनों अलग  अलग हो जाती है। और नर्मदा कावेरी संगम तक दोनों बहने एक दूसरे को मना फिर से साथ हो जाती है। जिसके कारण यह  पर्वत ॐ आकार का द्वीप बनकर ॐ कार का रूप धारण कर लेता है ।   इसी पवित्र स्थान को  नर्मदा कावेरी संगम कहा जाता है।

इस स्थान का बहुत महत्व है।  मनोकामना पूर्ण करने के लिए यात्री इस स्थान पर पत्थरो के घरों का निर्माण करते है । इसके पीछे की किवदंती यह है कि आप जितनी मंजिला इमारत पत्थरो से एक के ऊपर एक रख कर बनाते है भविष्य में उतनी ही मंजिला इमारत प्राप्त होती है। इस स्थान पर एक प्राचीन शिव मंदिर भी है जिसकी परिक्रमा के दौरान पूजा अर्चना तथा परिक्रमा कर ओमकार परिक्रमा के लिए जल भरकर आगे की ओर प्रस्थान किया जाता है। 

Narmada Kinare से जुडने के लिए धन्यवाद ....

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ओंकार परिक्रमा भाग - 2 coming soon............

भाग -

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1 Comments

  1. Our life has been blessed by staying in Omkar Tirth city and I will be very grateful to you for the wonderful supernatural knowledge that we have received through this heritage introduction page.

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