परिचय - हमारी इस यात्रा में आपको प्राचीन धावली मठ का वर्णन विस्तार से जानने को मिलेगा। यह मठ या यूँ कहें की सूर्य मंदिर लगभग कई शताब्दी पुराना है, जो प्राचीन समय में राजा महाराजाओं के समय से निर्मित है। जो पूर्ण रूप से प्राचीर पत्थरों से निर्मित है।पत्थरों पर अद्भुत कारीगरी देखने को मिलती है। मंदिर का हर हिस्सा काफी सुन्दर प्रतीत होता है। सुन्दर- सुन्दर मुर्तिया उत्कीर्णित है, आइये और अधिक जानते है इस प्राचीन मठ या मंदिर के बारे में।
धावली मठ (dhawali math) या सूर्य मंदिर (सूर्य मंदिर )
वैदूर्य मणि पर्वत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित है "धावली मठ (dhawali math) या सूर्य मंदिर (surya mandir), पूर्ण पाषाण पत्थरों से बना यह मठ अपनी सुन्दरता और वास्तुकला की अनुपम रचना है। अनंत शान्ति से भरा यह मठ अपने स्वर्णिम इतिहास को दर्शाता है। यह मठ न जाने कितने विद्वानों की स्थली रही होगी। आज भी यह मठ जिसे लोग सूर्य मंदिर के नाम से जानते है, अपनी वैभवपूर्ण गरिमा के साथ खड़ा है, इसकी बनावट इतनी खुबसूरत है कि इसे देखते ही रहने का मन करता है, पाषण पर सुन्दर सुन्दर मुर्तिया उत्कीर्णित की गई है, धावली मठ नर्मदा के किनारे एकांत में स्थित है। जहाँ अगर आप शांत चित्त मन से बैठ जाये तो अपने ह्रदय की आवाज आसानी से स्पष्ट सुन सकते है।
क्यों कहते है "सूर्य मंदिर" ? (kyu kehte hai "surya mandir" ?
हमारी पूर्व ख़ोज यात्राओं के दौरान हमे कुछ क्षेत्रीय लोगों द्वारा इसका नाम "सूर्य मंदिर" पता चला। लेकिन वास्तविकता को देखते हुए हमारे मन में प्रश्न उठने लगे की आखिर क्यों ? पड़ा इसका नाम surya mandir। इसकी बनावट भी इसी प्रकार है, क्यूंकि मंदिर में हर समय सूर्य का प्रकाश रहता है, अंदर एक कक्ष नुमा रचना है जिसमें दो खिडकियाँ है,जो दक्षिण दिशा की ओंर है। मंदिर का प्रांगन बाहर से खुला है, जो पूर्ण पाषण पत्थरों से निर्मित है। इसी वजह से मंदिर में सूर्य का प्रकाश विध्यामन रहता है। इसलिए शायद इस मंदिर को स्थानीय लोग सूर्य मंदिर के नाम से जानते है।
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कुछ समय पश्चात् पता चला यह "धावली मठ है"।
अनेक सवालों ने मन में घर बनाना प्रारंभ कर दिया था। दूसरी यात्रा के दौरान हमने मंदिर के हर हिस्से को अच्छे से देखा बारीकी के साथ अध्ययन किया, कुछ पुस्तकों को खंगाला, सर्च किया, कुछ विद्वान ब्राह्मण मिले उनसे भी चर्चा की इन सारी रिसर्च को करने के बाद Literature by Juergen neuss से हमने पता किया उसके कुछ समय पश्चात् पता चला यह "धावली मठ है"। जो प्राचीन समय में राजा महाराजाओं के बच्चों की शिक्षा का केंद्र हुआ करता था। यहाँ पर प्राचीन समय में बच्चों को शिक्षा दी जाती थी। हमने देखा तो नहीं है लेकिन हमारे बुजुर्गो से बहुत बार सुनने को मिलता था की प्राचीन समय में लोगों की आयु 100 वर्ष से भी अधिक हुआ करती थी। उनकी ऊँचाई और उनकी लम्बाई काफी ज्यादा हुआ करती थी। और वे रहने के लिए नर्मदा के तट ही पसंद किया करते थे। मठ को देखने के बाद यह अनुमान लगाया जा सकता है की इतने बड़े बड़े पत्थरों को कैसे रखा होगा। आज अगर देख जाए तो हमसे वो पत्थर हिल भी न पाए। यह मठ भी नर्मदा के किनारे ही स्थित है। यहाँ से नर्मदा का विहगम दृश्य दिखाई देता है, मठ से परकोटे से होते हुए घाट पर जाने का रास्ता भी निर्मित है, किन्तु अब वो परकोटे की दिवार ध्वस्त हो चुकी है। किनारे पर बड़े-बड़े पत्थरों से निर्मित सीढियां बनी हुई है एवं घाट जैसी आकृति बनी है।
मठ के बारे में हम आगे विस्तार से जानेंगे जैसे-
300 फिट से भी ऊँची है परकोटे की दिवार।
*पहुँच चुके है धावली मठ।
*नर्मदा नदी के किनारे है स्थित।
*मेहँदी वाड़ा(घाट)।
*प्रवेश द्वार पर उत्कीर्ण है मूर्तियाँ।
*मुख्य प्रवेश द्वार आदि
अभी हम आपको रास्ते के बारे में जानकारी दे रहे है क्यूंकि कठिन है रास्ता लेकिन कठिन लगता नही क्यों आईये जानते है।
कठिन है रास्ता
वैसे तो मठ पहुचने का रास्ता इतना आसन भी नहीं है, क्यूंकि यह मार्ग सीढियों वाला है। मार्ग में कई उतार चदाव आते है, जो हर व्यक्ति को थकान महसूस करा ही देता है। वैसे तो नर्मदा नदी पार कर आप चाँद सूरज द्वार से होते हुए इस स्थान पर पहुच सकते है। चाँद सूरज द्वार से ढलान की और आगे बढ़ना पड़ता है। उसके बाद एक पगडण्डी वाले रास्ते से पूर्व की ओंरमुड़कर यहाँ पंहुचा जा सकता है। लेकिन हमने सीढियों वाले रास्ते से न जाते हुए झाड़ियों वाले रस्ते से जाने का मन बना लिया था। इसलिए हम इसी रास्ते से आगे चले।
"मार्ग में स्थित है माता कुंती देवी का मंदिर"
जी हा "मार्ग में स्थित है माता कुंती देवी का मंदिर" जिसे आप हमारी पिछली पोस्ट में पढ़ सकते है। मार्ग में बिर्खला पर्वत से सीढ़ियों वाला रास्ता छोड़कर पगडण्डी वाले रास्ते से चलना होता है। 200 मीटर की सीधी चढाई के बाद प्राचीन परकोटे वाला रास्ता आता है। यहाँ से ओम्कारेश्वर में बने बाँध को एवं नर्मदा नदी को आसानी से देखा जा सकता है। यहाँ से माँ नर्मदा का सुदर दृश्य देखते ही शरीर की सारी थकान गायब हो जाती है। मन विचलित हो जाता है आखिर देखें तो क्या ? देखें ! हमारी नज़रों से हमारा नियंत्रण हट जाता है। एक तरफ दक्षिण की ओंर बहती हुई नर्मदा की धारा मन में हिलोरे लेती है, तो पूर्व की ओंर बाँध का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। वहीँ बाँध के पीछे नर्मदा का विहंगम दृश्य आँखों में समानें लगता है। आस-पास परकोटे की दीवारें जिन्हें देखने के बाद मन में प्रश्नों का बनना प्रारंभ हो जाता है, आखिर कैसे इन्हें प्राचीन समय के राजाओं ने जमाया होगा। और दूसरी ओंर परकोटे के भिखरे पड़े पत्थरों को देख कर दिमाग सोचना प्रारंभ कर देता है कि आखिर क्यों ? ये भिखर रहे है। इस स्थान पर पहुचने के बाद आपके दिमाग से आपका नियत्रण हट जाता है। ऐसा लगता है कि हमारा मन पूरा स्वतः ही चल रहा हो हमे command दे रहा हो। फिर क्या तुरंत पश्चिम की ओंर आँखों के सामने भीम-अर्जुन द्वार और उसके समीप सिद्धनाथ मंदिर के ध्वस्त खम्बे दिखाई पड़ते है। मैंने पहले ही कहाँ है यहाँ पहुचने के बाद आपके दिमाग से आपका नियत्रण हट जाता है। पढने के बाद आप इसकी कल्पना करना प्रारंभ कर देगे मुझे विश्वास है. इसी परकोटे के राश्ते से उत्तर-पश्चिम की और बढ़ने के बाद एक पगडण्डी वाला रास्ता दिखाई देता है। जो माता कुंती देवी के मंदिर तक जाता है तथा इसी रास्ते से उत्तर की ओंर बढ़ने के पश्चात रास्ते के दोनों ओंर परकोटे की दीवार ध्वस्त पड़ी दिखाई देती है। पुरे रास्ते के समीप पत्थर बिखरे पड़े है। आगे चलने पर रास्ता थोड़ा कठिन हो जाता है। टूटी परकोटे की दिवार से संभल कर निकलना होता है । कुछ दूर चलने पर परकोटे की दिवार आ जाती है। जिसे देखते ही रहने का मन करता है। यहाँ से उत्तर-पूर्व की ओंर बहुत ही मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है । अब हम रुक गए थे । देखें या चले, हम रुकने के बाद 10 मिनिट तक देखते रहे प्रकृति की नज़ारे। वो नर्मदा की धरा, वो मनोरम सूर्य उदय जो अपनी ललिमा लिए हुए मद्धम गति से धीरे - धीरे उपर आ रहा था ।
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300 फिट ऊँची परकोटे की दिवार
परकोटे की टूटी दिवार से संभलकर निकलने के बाद झाड़ियों वाला रास्ता प्रारंभ हो जाता है। यंहा कोइ रास्ता नही है हम झाड़ियों को हटाते हुए एवं रास्ता बनाते हुए आगे पहुचे, आगे पहुचने पर जंगली सूअरों के जड़ो को खाने के निशान एवं मिटटी में रुकने के निशान मिले कुछ देर हम यहाँ भी रुके, फिर हम आगे बढ़ते गए आखिर में हम 300 फिट ऊँची परकोटे की दिवार पर पहुच गए। यह जगह काफी डरावनी और काफी मन को मोह लेने वाली भी है। क्यूंकि यहाँ से नर्मदा से अलग हुई कावेरी की बहती हुई धारा मन में हिलोरे लेने लग जाती है। यंहा से बाँध का वह हिस्सा दिखाई देता है जिनसे बिजली बनती है। जिन्हें टर्बाइन कहते है। सामने जैन तीर्थ सिद्धवरकूट स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। जैन मंदिर की लहराती हुई पताका यहाँ से स्पस्ट दिखाई देती है। किन्तु धावली मठ अभी भी हमे दिखाई नही देता। यहाँ से हम सँभालते हुए आगे बढ़ते है, परकोटे की ऊँची दिवार से निचे देखने पर भय लगता है। फिर हम आगे बढ़ते हुए धावली मठ के करीब पहुच जाते है। लेकिन यंहा से भी हमे दिखाई नही देता है। यहाँ पहुचने के बाद एक खड़ी चढ़ाई वाला रास्ता है जिसे बड़े ही संभल कर उतरना होता है, लगभग 80-90 मीटर की चढ़ाई वाले रास्ते को उतरने के बाद थोडा और आगे बढ़ना होता है। इस जगह पर भी उतरने का रास्ता नही है, हम लकड़ियों के सहारे धीरे -ीरे उतरते है। इस रास्तें पर हम पूरी सावधानी के साथ उतरते है। हम हमारी आँखों देखा पूरा आपको बताने की कोशिस कर रहे है। ताकि आप अगर न भी जा पाए तो पढ़कर अनुभव कर सकते है कि आप स्वयं ही उतर रहे हो,चल रहे हो। अब पुरी तरह से निचे उतर चुके थे। निचे नर्मदा का किनारा दिखाई दे रहा था। नर्मद को देखते हुए बाईं ओंर देखने पर दिखाई देने लगता है धावली मठ।
नर्मदा नदी के किनारे है स्थित
अब हम करीब पहुँच चुके थे। यह मठ काफी प्राचीन और पुराना होने के बाद भी बहुत सुन्दर प्रतीत होता है। इसकी बनावट कुछ इस तरह है कि सामने मुख्य द्वार है, जो प्राचीन पाषाणों के खम्बो से सुसज्जित है। खम्बो पर सुन्दर-सुन्दर कलाकृतियाँ उत्कीर्णित की गई है, इन्ही खम्बो के उपर बड़े-बड़े पाषण पत्थरों से छत निर्मित है। सामने पूर्ण रूप से खुला है। मुख्य द्वार के अन्दर भी 3 प्रवेश द्वार है। तीनो द्वार से अन्दर प्रवेश करने का रास्ता है। अन्दर कक्ष नुमा हाल बना है जो कभी प्राचीन समय में राजा महाराजाओं के बच्चों की शिक्षा का मुख्य स्थान रहा होगा।
प्रवेश द्वार पर उत्कीर्णित है कलाकृतियाँ
मुख्य प्रवेश द्वार से प्रवेश करने के पश्चात हमे 3 मुख्य द्वार पुनः मिलते है। तीनो द्वारों पर चित्ताकर्षण कर देने वाली सुन्दर कलाकृतियाँ बनी है, किन्तु उससे पहले मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर हमे पाषाण खम्बों से बना हुआ पहला कक्ष मिलता है, जिसमें कारीगरों द्वारा की गई नक्कासी बहुत सुन्दर प्रतीत होती है। पाषण खम्बों के बिच से निकल कर मध्य के तीन द्वार तक पहुचते है।
मध्य प्रवेश द्वार
मध्य प्रवेश द्वार पर प्यारी एवं मनोहारी सुन्दर कलाकृतियाँ उत्कीर्णित है.। ये कलाकृतियाँ मन को मोह लेती है। पुरे द्वार पर मुर्तियाँ उत्कीर्णित है। द्वार के बाईं ओंर 4 मूर्तियाँ(द्वार पाल) एवं एक मुख्य मूर्ति के निचे भी एक मूर्ति समुचित तरीके से उत्कीर्ण है। द्वार के बाई तरफ 5 मूर्तियाँ (द्वारपाल) उत्कीर्ण है एवं निचे एक खंडित प्रतिमा भी दिखाई देती है। मुख्य ललाट पर गणेश जी की प्रतिमा है, इसके उपर 7 देवियों की प्रतिमाएं भी दृस्तिगोचर होती है, मुख्य वाग्देवी सरस्वती जी और बाकि 5 देवियाँ है, जिनपर धूल जमने के कारन स्पष्ट दिखाई नही देती। द्वार के दोनों और पाषण खम्भों पर कलश की आकृति बनी है, जिसे करीब से स्पष्ट देखा जा सकता है। हर एक उपरी पिलर पर एक मूर्ति उत्कीर्ण है जिसे कीर्ति मुख प्रतिमा कहते है।
पूर्वी द्वार
मठ का पूर्वी द्वार वैभवपूर्ण है, इस द्वार के उपरी हिस्से में कीर्तिमुख प्रतिमा स्थापित है। उसके निचे 5 देवियों की प्रतिमा और उनके बिच में दो हाथी एवं दो बाघ प्रतिमा उत्कीर्ण है। द्वार के दोनों और द्वारपालों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण है। द्वार के ललाट पर गणेश जी की प्रतिमा एवं दोनों पाषण खम्बों पर कलश की कारीगरी देखने को मिलती है।
पश्चिमी द्वार
मठ का पश्चिमी द्वार अनंत शोभायुक्त है। पूर्वी द्वार के जैसे ही इस द्वार पर भी कीर्तिमुख प्रतिमा, 5 देवियों की प्रतिमा के बीच 2 बाघ एवं 2 हाथी की पाषण से निर्मित प्रतिमा उत्कीर्ण है। दोनों ओंर द्वारपाल एवं ललाट पर श्री गणेश जी की कारीगरी देखने को मिलती है। इस द्वार से पूर्व की ओंर देखने पर पहाड़ी दिखाई देती है। उसके समीप परकोटे की दिवार।
मुख्य कक्ष में प्रवेश
मुख्य कक्ष में प्रवेश करने के लिए आप किसी भी द्वार से अंदर प्रवेश कर सकते है। अंदर प्रवेश करने के पश्चात यहाँ काफी ठंडा महसूस होता है। कक्ष काफी जगह घेरें हुए है, जो कुछ शताब्दी पूर्व शिक्षा का केंद्र हुआ करता था। अन्दर की छत पाषण पत्थरों पर टिकी हुई है। देखने पर दक्षिण की ओंर 2:3(अनुपात) में दो खिड़कियाँ एवं उत्तर-पूर्वी भाग थोड़ा ध्वस्त है। इसके अवशेष अंदर टूटकर कर बिखरे पड़े है। पश्चिमी दिवार 10 डिग्री झुकी हुई है। कक्ष के अंदर शांत वातावरण रहता है, अगर आप शांत (चित्त) मन से बैठे तो अपने ह्रदय की आवाज़ आप आसानी से सुन एवं महसूस कर सकते है। यहाँ पहुचने के बाद मन आनंदित हो जाता है। नर्मदा की लहरें मन को स्पर्श करती है। शांत वातावरण यहाँ खींचे रखता है।
42 खम्बो पर टीका है मठ
मठ में प्रवेश करने पर कलाकृतियों से उत्कीर्णित खम्बें दिखाई देते है, जिनपर टिका है पुरे मठ का भार। मुख्य प्रवेश द्वार से प्रवेश करने पर मध्य के 3 द्वारों तक 24 खम्बे है, जिनमें से 2 खम्बे ध्वस्त है। मध्य द्वार से अन्दर 18 खम्बे है। बहार के कक्ष में 24 एवं अंदर कक्ष में 18 इसी प्रकार कुल 42 खम्बो पर टिका है मठ।
बिखरे है अवशेष
मठ के समीप पत्थरों के ढेर बिखरे पड़े है। जिसमें कुछ साधारण तो कुछ रेतीले लाल पत्थर भी देखने को मिलते है। यह सभी बिखरे पड़े है। ऐसा लगता हैं, जैसे मठ के आस-पास और भी कुछ बना था, जो आज देखरेख के आभाव में ध्वस्त हो चूका है। मठ से कुछ दुरी पर उत्तर दिशा की ओंर श्री हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है।
प्रकृति का आनंद
मठ में जाने के बाद हमने कुछ समय व्यतीत किया। शांत वातावरण में मन शांत एवं चित्ताकर्षित रहता है। एक ओंर नर्मदा की धारा कल-कल कानों में ध्वनि करती तो कभी पक्षियों की केका ध्वनि कानों पर पड़ती। रुक रुककर पेड़ों की हवा सनसनाती हुई कानों के पास से गुजरती। इसी स्थान से सामने 2 km दूर नर्मदा के उत्तर तट पर गया शिला तीर्थ स्पस्ट दिखाई देता है। इन्ही सबके बिच कुछ समय व्यतीत कर हम लौट आये।
वापस लौटना था रोमांचित
हम पुनः दो पर्वतो के बिच सुनसान रास्तें से वापस लौट रहे थे। एक ओंर पहाड़ पर परकोटे की दिवार तो दूसरी ओंर झाड़ियों से भरा पहाड़ दिखाई दे रहा था। फिर कुछ दूरी पर दक्षिण दिशा की तरफ दो परकोटे की दीवार दिखाई दी, जो ध्वस्त थी। दीवार के पत्थर नीचे तक बिखरे पड़े थे। हमने मन बनाया की हम इस परकोटे की दीवार से लौटेंगे लगभग 12 मिनिट में हम पहली दीवार पर पहुँच गए। फिर धीरे-धीरे लकड़ियों के सहारे हम परकोटे की दूसरी दीवार पर भी पहुँच गए। 50 मीटर का रास्ता काफी लम्बा लगा क्यूंकि रास्ता ठीक नहीं था। हमने पहले ही बताया की दीवार के पत्थर निचे तक बिखरे पड़े थे। दूसरी दीवार से हम पहाड़ी दृश्य को देखने लगे। उत्तर दिशा की ओंर देखने पर यही परकोटे की दिवार एवं एक द्वार दिखाई दिया जो काफी दूरी पर था। स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था। सामने पूरा क्षेत्र झाड़ियों से भरा हुआ था, हमने अगली Narmada Kinare यात्रा में इस जगह जाने का निर्णय लिया। अब हम परकोटे की दिवार से झाड़ियों में रास्ता बनाते-बनाते आगे बढ़ रहे थे। यहाँ एक खाई है जहाँ मोर निवास करते है। कुछ दूर आगे चलने पर मोरों का झुड भी दिखाई दिया। जो लगभग 150 मीटर दूर थे। कुछ हमारे पास से झाड़ियों से उड़कर आगे निकल गए। चाँद सूरज द्वार से मोरों को सुबह-सुबह आसानी से देखा जा सकता है ।
निष्कर्ष
काफी रोमांचित रही यात्रा हमने इस बार परकोटे वाला रास्ता चुना जो झाड़ियों से भरा था । हमे इस यात्रा के दौरान काफी कुछ नया भी देखने को मिला। यह सब आँखों देखा मैंने लिखा है, ताकि आप स्वयं इस यात्रा का अनुभव कर सके । मठ का वर्णन भी स्पष्ट और विस्तार से किया गाया है। जितना हम जान पायें उतना आपके समक्ष मेरी लेखनी के माध्यम से बताने का प्रयास किया। अगर आपको Narmada Kinare ब्लॉग अच्छा लगा हो तो हमे comment में जरुर बताये। और हमारे ब्लॉग को subscribe जरुर करे।
धन्यवाद्
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